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मौर्य राजाओं ने सेना बहुत संगठित और बड़े आकार में व्यवस्थित की थी। चाणक्य ने ’चतुरंगबल’ (पैदलसैनिक, घुड़सवार सेना, हाथी और युद्ध रथ) को सेना का प्रमुख भाग बताया है।राजा की निरंकुशता एवं केन्द्रीय प्रशासन की पकड़ को मजबूत बनाने के लिए एक संगठित गुप्तचर प्रणाली का गठन किया गया था। गुप्तचरों में स्त्री तथा पुरुष दोनों होते थे तथा भेष बदलकर कार्य करते थे, जैसे-संन्यासी, छात्र, व्यापारी इत्यादि।मौर्य काल में केन्द्र से लेकर स्थानीय स्तर तक दीवानी और फौजदारी मामलों के लिए अलग-अलग न्यायालयों की जानकारी मिलती है। राजा न्याय का भी सर्वोच्च अधिकारी होता था। अर्थशास्त्र में दो तरह के न्यायालयों की चर्चा की गई है-धर्मस्थनीय तथा कंटकशोधन। धर्मस्थीय न्यायलय के द्वारा दीवानी अर्थात, स्त्रीधन या विवाह सम्बन्धी विवादों का निपटारा तथा कंटशोधन न्यायालय द्वारा फौजदारी मामले अर्थात हत्या तथा मारपीट जैसी समस्याओं का निपटारा होता था। विवादों का विधिवत पंजीकरण होता था तथा सभी को गवाही देने और अपना पक्ष रखने का अवसर प्राप्त होता था।
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