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बड़ा ही मनोहर वर्णन किया है। फिर चाहे वह हरे भरे खेत हो या बगीचे या फिर नदी का किनारा सभी कवि की इस रचना में जीवित हो उठे हैं। जिस समय यह कविता केदारनाथ जी ने लिखी थी वह नगर में रहते थे और किस कार्य वश वे चंद्र गहना ग्राम में आये थे और लौटते वक्त एक खेत के पास बैठकर वो प्रकृति का आनंद लेते हुए इस कविता की रचना करते हैं। वे अपनी कल्पना से खेतो में उगने वाली सारी फसलों को मानवी रूप दे देते हैं और उनकी विशेषता बताते हैं। और ये भी बताने में वे पीछे नहीं हटते की वो क्यों सुन्दर लग रहे हैं। वे अपनी कविता में नदी के तट पर भोजन ढूंढ रहे बगुला के साथ साथ उस पक्षी का भी बहुत ही सुन्दर वर्णन करते हैं जो नदी में गोता लगाकर अपना भोजन प्राप्त करता है।
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'चंद्र गहना से लौटती बेर' ( कवि परिचय)
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चंद्र गहना से लौटती बेर
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चंद्र गहना से लौटती बेर- केदारनाथ अग्रवाल
8:36mins
चंद्र गहना से लौटती बेर- केदारनाथ अग्रवाल
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हिंदी क्षितिज - केदारनाथ अग्रवाल for Class 9th: पाठ 14 - चंद्र गहना से लौटती बेर
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चंद्र गहना से लौटती बेर
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